पराली पर न फोड़ें ठीकरा, दिल्ली-यूपी-हरियाणा खुद हैं प्रदूषण के गुनहगार
फाइल फोटो: विकीपीडिया से साभार
सेहतराग टीम
अक्टूबर का दूसरा सप्ताह शुरू होते ही दिल्ली और उसके आसपास की आबोहवा बेहद खराब हो गई है। हवा में प्रदूषक तत्वों की मात्रा बेहद बढ़ गई है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने स्थिति के लिए सीधे-सीधे पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा धान की पराली खेतों में जलाए जाने को इस प्रदूषण की मुख्य वजह बताया है जबकि पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (ईपीसीए) ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया है। प्राधिकरण का दावा है कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में प्रदूषण के स्थानीय स्रोत खराब वायु गुणवत्ता के मुख्य कारण हैं।
उच्चतम न्यायालय से अधिकार प्राप्त ईपीसीए की सदस्य सुनीता नारायण ने कहा कि कूड़े का ढेर और धूल के साथ-साथ रबड़ कबाड़ और प्लास्टिक को खुले में जलाना चिंता का मुख्य कारण है। ईपीसीए ने पृथ्वी विज्ञान की वायु गुणवत्ता एवं मौसम पूर्वानुमान सेवा मंत्रालय ‘सफर’ के हवाले से कहा है कि दिल्ली में पीएम 2.5 की सघनता में बायोमास जलने की हिस्सेदारी अब तक 10 प्रतिशत से कम ही रही है।
‘सफर’ के आंकड़ों के अनुसार 10 अक्टूबर और 13 अक्टूबर के बीच बायोमास जलाए जाने का प्रभाव शून्य से नौ प्रतिशत के बीच रहा। उसने एक रिपोर्ट में कहा, ‘दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (259) खराब श्रेणी में रहा। वायु गुणवत्ता बीती रात कुछ देर के लिए बहुत खराब श्रेणी में रही। इस दौरान पराली जाने का प्रभाव सर्वाधिक आठ प्रतिशत रहा।’
नारायण ने कहा, ‘बायोमास जलाने की घटनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ये दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की स्थिति और बिगाड़ रही हैं, लेकिन तथ्य यह है कि प्रदूषण के स्थानीय स्रोत अत्यधिक हैं। बायोमास जलाने का योगदान 10 प्रतिशत है जिसका अर्थ यह हुआ कि प्रदूषण के शेष 90 प्रतिशत कारण स्थानीय स्रोत हैं। इसके लिए उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली जिम्मेदार हैं।’
ईपीसीए ने कहा कि एशिया के सबसे बड़े थोक कचरा बाजार टिकरी कलां के निकट हरियाणा के बहादुरगढ़ जिले में कृषि भूमि पर अवैध गोदाम बने हैं। वे कचरा जला रहे हैं, जो पुन: चक्रित नहीं किया जा सकता।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए मंगलवार को क्रमिक कार्रवाई कार्ययोजना (जीआरएपी) प्रभाव में आ जाएगी और स्थिति के हिसाब से निजी वाहनों को निरुत्साहित करने, डीजल जेनरेटरों के इस्तेमाल पर रोक, ईंट के भट्टे और स्टोन क्रशर बंद करने जैसे कठोर कदम तत्परता से उठाए जाएंगे।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जीआरएपी तैयार की थी और उसे 2017 में पहली बार लागू किया गया था। उसमें वायु प्रदूषण कम करने के लिए स्थिति के हिसाब से कई उपायों का उल्लेख है। इस साल जीआरएपी के तहत चार नवंबर से दिल्ली सरकार की वाहनों की सम-विषम योजना शुरू होगी तथा एनसीआर के गुड़गांव, गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, फरीदाबाद, सोनीपत, पानीपत, बहादुरगढ़ शहरों में डीजल जेनरेटों पर पाबंदी लगेगी।
Comments (0)
Facebook Comments (0)